History 12, chapter 9, notes:जोतदारों का उदय
जोतदारों का उदय
1-जोतदारों की भूमिका और शक्ति
जोतदार ग्रामीण समाज में एक शक्तिशाली वर्ग के रूप में उभरे। ये वे लोग थे जिनके पास बड़ी जोत (खेती योग्य भूमि) थी और जो कई बार खुद भी खेती करते थे या बटाईदारों को खेती के लिए ज़मीन देते थे।
2-मुख्य विशेषताएँ:
- स्थानीय प्रभुत्व: जोतदार गांवों में ही रहते थे, जिससे उनका ग्रामीण समाज में सीधा प्रभाव पड़ता था।
- व्यापारिक और साहूकारी नियंत्रण: वे न केवल खेती में बल्कि स्थानीय व्यापार और ऋण (साहूकारी) में भी संलग्न थे।
- बटाई प्रथा: जोतदार अपनी ज़मीन बटाईदारों (किसानों) को जोतने के लिए देते थे और बदले में आधी उपज लेते थे।
- सामाजिक शक्ति: पंचायतों, गाँव के निर्णयों और स्थानीय प्रशासन को प्रभावित करते थे।
3-ज़मींदार बनाम जोतदार
ब्रिटिश शासन में ज़मींदारों की नियुक्ति राजस्व वसूली के लिए की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे जोतदारों ने गांवों में अधिक सत्ता और प्रभाव स्थापित कर लिया।
मुख्य अंतर:
- ज़मींदार शहरों में रहते थे, जबकि जोतदार गांवों में रहते थे।
- ज़मींदारों की अनुपस्थिति के कारण जोतदारों ने ग्रामीण समाज में अधिक नियंत्रण स्थापित कर लिया।
- खेती का वास्तविक संचालन जोतदार ही करते थे।
- जोतदारों का न्यायिक और सामाजिक प्रभाव भी बढ़ गया था।
ज़मींदारी की समस्याएँ
ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई स्थायी बंदोबस्त प्रणाली के अंतर्गत ज़मींदारों को कर वसूली का अधिकार दिया गया था
मुख्य समस्याएँ:
- ज़मींदार अपने दायित्वों की अनदेखी करते थे।
- किसानों पर अत्यधिक कर का बोझ होता था, जिससे वे कर्ज़ में डूबते थे।
- कई गांवों में विरोध और किसान आंदोलन शुरू हो गए।
- कई ज़मींदार समय पर राजस्व नहीं चुका पाए, जिससे उनकी ज़मीनें जब्त हो गईं।
- प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर हो गया और ग्रामीण व्यवस्था बिगड़ने लगी।
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