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History 12,chaper 6 notes: Lingayat Sect / Veerashaiva Movement

                  लिंगायत संप्रदाय / वीरशैव आंदोलन 🔷 परिचय : लिंगायत संप्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में बसवेश्वर (या बसवन्ना) ने कर्नाटक में की। इसे वीरशैव आंदोलन भी कहा जाता है। यह आंदोलन ब्राह्मणवादी परंपराओं, जाति व्यवस्था और मूर्ति पूजा के विरुद्ध था। 🔷 मुख्य सिद्धांत: 1. एकेश्वरवाद – लिंगायत केवल एक ईश्वर को मानते हैं, जिसे ‘लिंग’ के रूप में पूजा जाता है। 2. जाति प्रथा का विरोध – यह आंदोलन वर्ण व्यवस्था और छुआछूत के विरोध में था। 3. व्यक्तिगत भक्ति – भगवान से प्रत्यक्ष संबंध को महत्वपूर्ण माना गया, मंदिर और मूर्तियों की पूजा को अनावश्यक बताया। 4. पुनर्जन्म और श्राद्ध का विरोध – मृत्यु के बाद कर्मकांडों और श्राद्ध की परंपरा को नकारा गया। 5. स्त्री और पुरुष समानता – स्त्रियों को भी धार्मिक अधिकार दिए गए। 🔷 विशेषताएँ : लिंगायत अनुयायी अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं। यह आंदोलन सामाजिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम था। यह भक्ति आंदोलन का ही एक भाग था, लेकिन इसका दृष्टिकोण सुधारवादी और क्रांतिकारी था। 🔷  Lingayat Sect / Veeras...

History 12,chapter 6: Alvar and Nayanar saints

      अलवार और नयनार संत (भक्ति आंदोलन - दक्षिण भारत) 📌 परिचय: अलवार और नयनार दक्षिण भारत (तमिलनाडु) में भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे। इन संतों ने ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति (एकेश्वरवाद) पर बल दिया और जातिवाद व ब्राह्मणवादी परंपराओं का विरोध किया। 🔷 अलवार (Alvar): ये विष्णु भक्त संत थे। 'अलवार' का अर्थ है – "ईश्वर में डूबे हुए" । इन्होंने तमिल भाषा में भक्ति गीत रचे। जाति-पाति से ऊपर उठकर भक्ति पर बल दिया। कुल 12 अलवार संत माने जाते हैं। इनकी रचनाओं को "नालायरा दिव्य प्रबंधम" में संग्रहीत किया गया है। प्रमुख अलवार: नाम्मालवार आंडाल (एकमात्र महिला अलवार) पेय अलवार , भूतथ अलवार , तिरुमंगै अलवार आदि। 🔷 नयनार (Nayanar): ये शिव भक्त संत थे। 'नयनार' का अर्थ है – "नेता या पूजनीय व्यक्ति" । इन्होंने शिव की निःस्वार्थ भक्ति को महत्त्व दिया। कुल 63 नयनार संत माने जाते हैं। इनकी कथाएँ "पेरिय पुराणम्" में संकलित हैं (लेखक: सेक्किळार )। प्रमुख नयनार: अप्पार (Tirunavukkarasar) संभंदर सुंदरर ...

Class 12 History chapter 9 Notes :राजमहल की पहाड़ियों में

मुख्य बिंदु                     राजमहल की पहाड़ियों में 1. बुकानन की यात्रा (उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत): राजमहल की पहाड़ियाँ दुर्गम और खतरनाक मानी गईं। स्थानीय लोग अंग्रेज अधिकारियों से भयभीत और असहयोगी थे। कई बार गाँव छोड़कर भाग जाते थे। 2. बुकानन की डायरी: लोगों की स्थिति दयनीय बताई। डायरी क्षणिक जानकारी देती है, संपूर्ण इतिहास नहीं। इतिहास जानने के लिए अन्य स्रोतों और मौखिक परंपराओं का सहारा लिया जाता है। 3. पहाड़ी लोगों की जीवन शैली: झूम खेती करते थे (स्थान बदल-बदल कर खेती)। जंगल साफ कर झाड़ियाँ जलाते, राख से मिट्टी उपजाऊ बनाते। दालें, ज्वार-बाजरा आदि उगाते। कुछ साल खेती कर जमीन को छोड़ देते, जिससे उसकी उर्वरता लौट आती थी। पहाड़िया लोग जंगलों से जीवन यापन करते थे। खाने के लिए महुआ के फूल इकठ्ठे करते थे। बेचने के लिए रेशम के कोया, राल और काठकोयला इकठ्ठा करते थे। लकड़ियाँ इकट्ठी करके चीजें बनाते थे। पेड़ों के नीचे की छोटी-छोटी झाड़ियाँ या घास-पूस पशुओं के लिए चरागाह बन जाती थी।

History 12, chapter 9,Notes:Fifth report (पाँचवीं रिपोर्ट)

                      पाँचवीं रिपोर्ट पर टिप्पणी  "पाँचवीं रिपोर्ट" ब्रिटिश संसद में 1813 में पेश की गई एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट थी, जिसका उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में किए गए प्रशासनिक और आर्थिक कार्यों की समीक्षा करना था।  अक्सर 'पाँचवीं रिपोर्ट' के नाम से उल्लिखित यह रिपोर्ट 1,002 पृष्ठों में थी। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भूमि व्यवस्था, राजस्व वसूली और किसानों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। रिपोर्ट में यह कहा गया कि 1793 में स्थायी बंदोबस्त लागू होने के बाद राजस्व में कोई वृद्धि नहीं हुई, जबकि कंपनी का खर्च लगातार बढ़ता गया। रिपोर्ट यह भी बताती है कि ज़मींदारी व्यवस्था के कारण किसानों की हालत और भी खराब हो गई थी। यह रिपोर्ट भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के बारे में यूरोपीय विचारों को भी दर्शाती है। इन विचारों के अनुसार भारतीय समाज पिछड़ा हुआ और असंगठित था, जिसे सुधारने की आवश्यकता थी। इन्हीं विचारों के कारण अंग्रेजों ने भारतीय समाज में हस्तक्षेप करना उचित समझा। संक्षिप्त नोट्स: "...

History 12 chapter 9, notes: ज़मींदारों का प्रतिरोध

ज़मींदारों का प्रतिरोध पृष्ठभूमि : स्थायी बंदोबस्त के तहत ज़मींदारों को ईस्ट इंडिया कंपनी को निश्चित राजस्व देना होता था। यदि वे समय पर राजस्व नहीं दे पाते, तो उनकी ज़मीन नीलाम की जा सकती थी। इस कारण ज़मींदारों में भय और असुरक्षा फैल गई, जिससे उन्होंने अपनी ज़मीन बचाने के लिए चालाक रणनीतियाँ अपनाईं। ज़मींदारों की प्रतिरोध की रणनीतियाँ: 1. बेनामी बिक्री (फर्ज़ी बिक्री): ज़मींदार अपनी ज़मीन किसी भरोसेमंद रिश्तेदार या सहयोगी के नाम पर बेचने का दिखावा करते थे। इससे ज़मीन उनके नाम पर न होने से कंपनी उसे जब्त नहीं कर सकती थी। 2. नीलामी प्रक्रिया में हेरफेर: जब ज़मीन नीलामी में जाती, तो ज़मींदार अपने लोगों को बोली लगाने भेजते थे। वे बाहरी खरीदारों को डराकर या धमकाकर नीलामी से दूर रखते थे। उनके एजेंट कम कीमत में ज़मीन खरीद लेते थे और ज़मीन पर ज़मींदार का ही नियंत्रण बना रहता था। 3. गाँव वालों की भागीदारी: गाँव के लोग अक्सर ज़मींदारों के प्रति वफादार रहते थे। वे नीलामी में आए बाहरी खरीदारों का विरोध करते थे और उन्हें दूर भगा देते थे। इससे कंपनी के लिए ज़मीन को सफल...

History 12, chapter 9, notes:जोतदारों का उदय

                  जोतदारों का उदय   1- जोतदारों की भूमिका और शक्ति जोतदार ग्रामीण समाज में एक शक्तिशाली वर्ग के रूप में उभरे। ये वे लोग थे जिनके पास बड़ी जोत (खेती योग्य भूमि) थी और जो कई बार खुद भी खेती करते थे या बटाईदारों को खेती के लिए ज़मीन देते थे। 2-मुख्य विशेषताएँ : - स्थानीय प्रभुत्व: जोतदार गांवों में ही रहते थे, जिससे उनका ग्रामीण समाज में सीधा प्रभाव पड़ता था। - व्यापारिक और साहूकारी नियंत्रण: वे न केवल खेती में बल्कि स्थानीय व्यापार और ऋण (साहूकारी) में भी संलग्न थे। - बटाई प्रथा: जोतदार अपनी ज़मीन बटाईदारों (किसानों) को जोतने के लिए देते थे और बदले में आधी उपज लेते थे। - सामाजिक शक्ति: पंचायतों, गाँव के निर्णयों और स्थानीय प्रशासन को प्रभावित करते थे। 3-ज़मींदार बनाम जोतदार ब्रिटिश शासन में ज़मींदारों की नियुक्ति राजस्व वसूली के लिए की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे जोतदारों ने गांवों में अधिक सत्ता और प्रभाव स्थापित कर लिया। मुख्य अंतर : - ज़मींदार शहरों में रहते थे, जबकि जोतदार गांवों में रहते थे। - ज़मींदारों की अनुपस्थिति के का...

CBSE Class 12 History syllabus for the academic year 2025-26

CBSE Class 12 History syllabus for the academic year 2025-26, as per the official curriculum released by the Central Board of Secondary Education (CBSE).  📘 CBSE Class 12 History Syllabus 2025-26 The syllabus is organized into three parts, each focusing on different themes in Indian history.  Part I: Themes in Indian History – I (25 Marks) 1. Bricks, Beads and Bones: The Harappan Civilization Exploration of early urban centers and archaeological findings. 2. Kings, Farmers and Towns: Early States and Economies (c. 600 BCE–600 CE) Study of political and economic structures in early states. 3. Kinship, Caste and Class: Early Societies (c. 600 BCE–600 CE) Examination of social hierarchies and family structures. 4. Thinkers, Beliefs and Buildings: Cultural Developments (c. 600 BCE–600 CE) Insights into religious and philosophical developments.  Part II: Themes in Indian History – II (25 Marks) 5. Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society (10th to 17th centuries)...